शनिवार, 9 मई 2020

समग्र गुणवत्ता प्रबंधन (टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट)


समग्र गुणवत्ता प्रबंधन (टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट)

मैं जिस महात्मा का भक्त रहा हूँ उनका एक नाम श्री काउरो इशीकावा है। वे जापानी ऋषि हैं और उनके विचारों और पुस्तकों का अंग्रेज़ी अनुवाद उपलब्ध है। मानवीय संवेदना में औद्योगिकीकरण के सामंजस्य और उसकी उपयोगिता को उन्होंने टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट का नाम दिया।

जापान में कार्य से सिद्ध उपयोगिता के वृद्धि को धर्म या क्वालिटी कहते हैं। वहां क्वालिटी वस्तु की तकनीक में नहीं मानवता में वस्तु के उपयोगिता का नाम है। टोटल का अर्थ होता है अविभाजित या जिसमें व्यवसाय या प्रतिस्पर्धा के कारण कभी मनुष्यता के हितों का कोई टकराव न हो। क्वालिटी अर्थात वस्तु पर निर्भर उपयोगिता का वह भाव जिससे लगाव पैदा हो जाय या जिसे भारत में रज गुण कहते हैं। इसी विषय में उनका गंभीर चिंतन रहा है। मैनेजमेंट व्यवस्था की वह समझ है जिससे संगठन के माध्यम से समाज के उद्देश्य या लक्ष्य पूरे किए जा सकते हैं और जिससे रिस्क या सम्भावित असफलता के भय के सभी अनुमानित कारणों को दूर किया जाय या उसे होने पर नियंत्रित किया जा सके।
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श्री काउरो इशीकावा के चिंतन जिससे जापान बहुत प्रभावित हुआ है उसके वाक्य इस तरह के हैं।

किसी व्यक्ति की आमदनी इस लिये अधिक या कम नहीं होनी चाहिए कि उसकी योग्यता कैसी है। व्यक्ति की योग्यता या मेरिट को उसकी आमदनी से कभी नहीं जोड़ना चाहिए।

उनका यह कहना था कि यदि योग्यता का आकलन धन से होता है तो इसका मतलब यह है कि योग्यता खरीदी और बेची जा सकती है। इससे योग्य व्यक्ति निंदा का पात्र बन जायगा क्योंकि वह अपने योग्यता के वृद्धि के लिए धन को कारण समझेगा। शिक्षा का आधार ज्ञान नहीं व्यापार बन जायगा और ज्ञानी शिक्षित व्यक्ति व्यापार न जानने के कारण असहाय हो सकता है। लोग फिर अपने अपने रुचि या स्वाभाविक संकल्प को त्याग कर सिर्फ धन के लिये कार्य करेंगे। मानवता के पतित होने में फिर देरी नहीं लगेगी।

धन, किसी कार्य या क्वालिटी का उद्देश्य नहीं हो सकता। यह एक साधन है साध्य नहीं। धन की उपलब्धता व्यवसाय के लिए आवश्यक है किन्तु इससे क्वालिटी पर कोई असर नहीं होता। क्वालिटी का कारण कार्य में रुचि और मानवता के प्रति समर्पण है।

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जापानी उद्योगपति अमेरिका या फ्रांस को देख कर आश्चर्य करते थे। उनको धन के लालच से कैसे विद्या या योग्यता का आकलन किया जाता है देख, आश्चर्य होता था। काम करने वाले मजदूर और उनके अधिकारियों के वेतन और सुख सुविधाओं में अमानवीय भिन्नता देख कर उनको विश्वास नहीं हुआ।

जापान एक साँस्कृतिक देश है। यह देश चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। भारत या अमेरिका की तरह यहां विदेशी आक्रमण नहीं हुये। इसी लिए यहां की संस्कृति बची रह गई। इसी लिए, यहां परस्पर अविश्वास का कोई कारण ही नहीं रहा और असत्य जैसे रक्षा उपकरणों की आवश्यकता नहीं रही। परिवार में जिस तरह लोग एक दूसरे का सम्मान और परंपरा का निर्वाह करते हैं उससे प्रबंध कला में जटिलता और द्वेष नहीं आ सकी। यहां वकील या झगड़े को लगाने बुझाने वालों की संख्या संसार में सबसे कम है। आज भी इस मामले में जापान एक निर्बल देश है।

भारत में जिस तरह अमानवीय औद्योगिकीकरण हुआ है वह पश्चिमी असभ्यता से भी अधिक है। हम भारतीय अपने आप को बुद्ध की सन्तान कहते रहे हैं किन्तु उससे कोई लाभ नहीं है। हमसे कई गुना अच्छे पश्चिमी असभ्य देश हैं जो संस्थागत लालच और भय के सदुपयोग से प्रबंधन की प्रणाली को विकसित कर चुके हैं। जहां योग्‍यता का बाजार है और वहां उसकी मंडी है। उनकी अमानवीयता या असमानता, इस लिए स्वीकार्य है कि उससे किसी का शोषण नहीं हो रहा है।

भारत में महाराष्ट्र में मजदूरों के रेल्वे के मार्ग पर कट कर मरने की खबर से मैं विचलित हो गया हूँ। मुझे लगता है कि मैं भी दोषी हूँ कि जिस देश में मैं यही शिक्षा देता रहा हूँ उसी भारत के औद्योगिक विकास की गति का कारण मानवता का शोषण है।

दुःख के साथ,

कृष्ण गोपाल मिश्र
गुरुग्राम, हरियाणा

नोट - लेखक का कहना है कि टोटल (Total) अविभाज्य को कहते हैं, जिसमें व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण मानवीय हित का टकराव न हो।



(साभार - Das Krishna फेसबुक वॉल)

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