सोमवार, 11 मई 2020

नीति (Policy)


नीति (Policy)
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किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा अपनाई या प्रस्तावित की गई क्रिया या सिद्धांत को सामान्यतः नीति कहा जाता है। राष्ट्रों द्वारा भी नीतियों का निर्माण किया जाता है, जैसे राष्ट्रीय खेल नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, आदि आदि। संस्थाओं द्वारा भी कई प्रकार की नीतियाँ बनाई जाती हैं। मसलन जब कोई संस्था आईएसओ 9001:2015 गुणवत्ता प्रबंध प्रणाली कार्यान्वित करती है तो नीति (Policy) बनाती है। आईएसओ 9001:2015 गुणवत्ता प्रबंध प्रणाली मानक के खंड 5.2 के अधीन ऐसी नीति (Policy) संस्थापित, कार्यान्वित और संपोषित करनी होती है, जो संस्था के उद्देश्य और प्रसंग के प्रति उपयुक्त हो, जो संस्था की सामरिक दिशा को सहारा दे, जो गुणवत्ता उद्देश्यों को स्थापित कराने के लिए ढाँचा प्रदान करे, जिसमें लागू अपेक्षाओं को संतुष्ट कराने और गुणवत्ता प्रबंध प्रणाली के लगातार सुधार की प्रतिबद्धता शामिल हो। साथ ही संस्था का यह दायित्व है की वह संस्था में गुणवत्ता नीति संप्रेषित करें और साथ ही सुनिश्चित करें - (1) संस्था में गुणवत्ता नीति की समझ, (2) संस्था में गुणवत्ता नीति का अनुप्रयोग, (3) उपयुक्त इच्छुक दलों को गुणवत्ता नीति की उपलब्धता, जैसा उपयुक्त हो। साथ ही संस्था गुणवत्ता नीति संस्था में उपलब्ध कराए और इसकी दस्तावेज जानकारी सम्पोषित करे।

मैंने 'नीति' के सम्बन्ध में प्रबंध प्रणालियों के प्रमुख सलाहकार और गुरु श्री कृष्ण गोपाल मिश्र से बातचीत की, तो उन्होंने निम्न विचार सम्प्रेषित किए, जो मैं नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ -

"नीति उसे कहते हैं, जिससे लोग स्वतंत्र निर्णय ले सकें और उनके रास्ते भी एक दिशा और लक्ष्य की ओर जाएं। नीति के बाद कोई भी निर्णय लेने से किसी को कोई आश्चर्य नहीं होता। लोगों को दिशा और लक्ष्य का पता होता है। इससे संस्था में पारदर्शिता आती है और उसके पालन में सभी समान रूप से उत्तरदायी होते हैं। ..... अंग्रेजी भाषा में नीति को पॉलिसी कहते हैं। पॉलिसी, पुलिस, पॉलिटिशियन का मूल अर्थ है डंडा या पोल। किसी भी देश को जीतने के बाद उसके बाउंड्री पर डंडा खड़ा करने की परंपरा रही थी, जिससे लोगों को पता हो कि यह क्षेत्र उनका है। उनकी पहिचान के लिए उस दण्ड पर चिन्ह लगा कपड़ा बाँध कर उसे झंडा कहा जाता है। अपना संकल्प सब को बताने के लिए डंडा या झंडा गाड़े जाने या फहराने को ही पॉलिसी कहते हैं। इसी तरह नीति बनाने वाले उसकी रक्षा के लिए संकल्प लेते हैं और उसे सभी को बताते हैं। व्यवसायियों को भी अपने कर्मचारियों को कार्य की नीति बतानी होती है, जिससे वे मनमानी न कर सकें। उदाहरण के लिए व्यवसायी को अपने कर्मचारियों को उसका यह संकल्प बताना आवश्यक होता है कि ग्राहक की आवश्यकता को वे ठीक से समझे और उसे पूरा करें। इसके लिए कर्मचारियों को हर बार उसे याद दिलाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। पॉलिसी बदली जा सकती है, किन्तु सोच समझ कर, और किसी अवधि के बाद। .... नीति प्रबंधन की दिशा लक्ष्य के लिए एक संकल्प है जो सबको पता होना चाहिए। इसके बिना लोग अपने अपने तरीके से निर्णय नहीं ले सकते। उदाहरण के लिए - यह एक व्यावसायिक नीति हो सकती है कि किसी कार्य के लिए किसी को कोई रिश्वत न दी जाय, चाहे उसे न देने से कितना भी नुकसान क्यों न हो, या, रिश्वत देने के बिना यदि काम नहीं हो सकता है तो कहाँ कहाँ उसकी आवश्यकता है, और उसके लिये क्या सावधानी हो और उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। इसी तरह नीति के स्पष्टीकरण संस्था के लिए आवश्यक होते हैं। इसके बिना रिश्वत देने पर कर्मचारियों को नीति तोड़ने का दोषी माना जायगा। ..... नीति का अर्थ भारत में न्य इति से है। इसका अर्थ है कि नीति बनने के बाद इस पर अनावश्यक बहस नहीं होगी। न्य या बहस का अंत या इति ही नीति है। ट्रैफ़िक लाइट पर कोई बहस करने लग जाय कि लाल रंग पर क्यों रुकें और हरे रंग की लाइट पर ही क्यों चलें, यह नहीं हो सकता। यह जो भी तय हुआ है, वही सभी को बिना किसी बहस किए मानना ही होगा। यही कारण है कि नीति प्रशासन के लिए उपयोगी होती है। इसके बिना कर्मचारियों को समझाना सरल नहीं होता।" (साभार - श्री कृष्ण गोपाल मिश्र, गुरुग्राम, हरियाणा)

मिश्राजी के विचारों से हमें यह समझने में आसानी होती है कि नीति की जरुरत क्यों है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नीति से लोगों को दिशा और लक्ष्य का पता होता है। इससे संस्था में पारदर्शिता आती है और उसके पालन में सभी समान रूप से उत्तरदायी होते हैं। कोई भी नीति स्थाई नहीं है, वह बदली जा सकती है सोच समझ कर एक अवधि के बाद अर्थात कोई भी नीति की समीक्षा कर उसे बदला जा सकता है।

शुभकामनाओं सहित,

केशव राम सिंघल

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