मंगलवार, 26 मई 2020

जोखिम नियंत्रण व्यवस्था Risk management


जोखिम नियंत्रण व्यवस्था Risk management

रिस्क, उन कारणों को कहते हैं जो विश्वसनीय किन्तु सम्भावित हो सकते हैं जिससे लक्ष्य या किसी संकल्प की पूर्ति में व्यवधान या असफलता हो. लक्ष्य का होना किसी भी रिस्क या जोखिम के लिए आवश्यक है. जिसका कोई लक्ष्य या संकल्प ही न हो उसके पूर्ति या न पूर्ति होने से क्या फर्क़ पड़ेगा. जिसका लक्ष्य मृत्यु का हो उसके लिए दुर्घटना एक अवसर है किन्तु जिसका लक्ष्य जीवित रहना है उसके लिए कोई भी बीमारी या अस्वस्थ रहना या दुर्घटनाग्रस्त होना, रिस्क या जोखिम होगा. इसी विषय को गंभीरता से समझने के लिए हिंदी भाषी प्रबंध शास्त्रियों के लिए यह लेख प्रस्तुत किया गया है.
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एक व्यक्ति कार से रोज अपने काम पर जाता आता है. उसकी इच्छा (goal) यही रहती है कि वह कार चलाते समय सदा सुरक्षित रहे, उसे रास्ते में कोई ट्रेफिक पुलिस परेशान न करे, और सदैव समय पर अपने ऑफिस पहुंचे.

उसके लिए समय पर ऑफिस न पहुंचना, ट्रेफिक पुलिस का दंड, या अपनी या उस कार से किसी और की भी दुर्घटना होने की संभावना, जोखिम (risk) कहलाता है. यदि यही जोखिम जो एक संभावना हैं घटित हो जाते हैं, तो यही Incident या असफलता या दुर्घटना कहलाता है.

कार की रख रखाव, उसका ड्राइविंग लाइसेंस, इंश्योरेंस और फिटनेस, उसका उस रास्ते का अनुभव उसकी अंदरूनी ताकत (strength /weakness ) है. जबकि ट्रेफिक पुलिस, उसके कानून या रोड पर होने वाली भीड़ उसके बस की बात नहीं होती, इसलिए वे बाहरी अड़चन Threat/opportunity हैं. अंदरूनी ताकत strenth /weakness और बाहरी अड़ चन Threat opportunities ये दोनों विरोधी हैं और इसके द्वारा तय होता है कि किसी कार्य में जोखिम कितना होगा.

याद रहे कि यदि बाहरी अड़चन Threat न हो तो आंतरिक कमजोरी weakness हो भी, तो भी कोई जोखिम risk नहीं होता. उदाहरण के लिए, ताज महल को कोई उठाकर नहीं ले जा सकता इसलिए वह कितना भी कीमती क्यों न हो उसे कोई Threat बाहरी अड़चन नहीं है, किन्तु उसी ताजमहल में जाने वाले लोगों के मोबाइल फोन को चुराने वाले Threat बहुत हैं और उनको उसका ध्यान रखना आवश्यक है और इसमें कोई असावधानी या कमजोरी weakness नहीं चाहिये. जोखिम के लिये वस्तु का कीमती होना या सस्ता होना महत्वपूर्ण नहीं है. यह महत्वपूर्ण है कि उस का threat या उसके ऊपर किसकी काली नजर है और उसे बचाने के लिए हम कितने सावधान हैं.

जब तक उसकी अंदरूनी ताकत इतनी पर्याप्त नहीं (weakness/strength) है कि वह बाहरी अड़चन threat/opportunities को दूर कर सके तो वह व्यक्ति जोखिम के अंदर है इसलिए भयभीत भी रहेगा किन्तु वह अभी तक घटित नहीं हुयी, या कोई दुर्घटना या पुलिस द्वारा दंड या समय से ऑफिस पहुंचने में देरी से बचा हुआ है. इस स्थिति को ही vulnerability या exposer to risk या लाचारी कहते हैं.

इस लाचारी vulnerability का एक उदाहरण यह है कि किसी दिन उस व्यक्ति के कार का इंश्योरेंस की अवाधि खत्म हो गयी. इसका कारण उसकी अंदरूनी कमजोरियों weakness /strength हैं जैसे कि वह इंश्योरेंस की अंतिम तिथि भूल गया है या, उसे पता होते हुए भी उसे समय नहीं मिला कि वह इंश्योरेंस कंपनी जा सके, या फिर उसे जोखिम की परवाह ही नहीं है. फिर भी, उसके सामने जोखिम या दुर्घटना की संभावना या ट्रेफिक पुलिस के द्वारा चालान होने की संभावना बनी हुई है किन्तु उस जोखिम का घटित होना बचा है.

जो अब तक एक जाना गया जोखिम या exposure to risk था, या उसे जिस दुर्दशा की संभावना थी किन्तु वह अभी तक घटित नहीं हुआ है इसलिये वह एक लाचारी vulnerability है. लाचारी के कारण बहुत हो सकते हैं किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि उसे इसका (known risk) ज्ञान नहीं था, और लापरवाही उनमें से एक हो सकती है. एक दिन यह हो गया कि उस व्यक्ति का उस लाचारी की स्थिति में ट्रेफिक पुलिस से सामना हो गया और वह इंश्योरेंस पॉलिसी उसे दिखा पाने में असमर्थ था. वही जोखिम अब घटित हो गया जिससे उसका तय लक्ष्य पूरा न हो सका. तय लक्ष्य का पूरा न होना ही Incident या दुर्दशा या दुर्घटना या असफलता है.

उस व्यक्ति ने किसी तरह पुलिस का चालान भरा और जितना जल्दी हो सकता था मामले को शांत किया. यही निपटान या correction है.

घर आ कर उस व्यक्ति ने उस दिन की घटना Incident और उसकी गंभीरता पर चिंता की impact और फिर उस घटना के होने के लिये उत्तरदायी पुराने या किसी नये अंदरूनी कमजोरियों के कारण root cause analysis की खोज की. और, यह तय किया कि उसे दुबारा कभी इस तरह की लाचारी की स्थिति में नहीं रहना चाहिए. उसके सभी लाइसेंस और इंश्योरेंस और गाड़ी की फिटनेस अपनी अवाधि से पहिले ही बनने चाहिए. उसे इसे न भूलने की भी व्यवस्था करनी होगी. यही control objectives या नियंत्रण के लक्ष्य या माप दंड हैं.

उदाहरण के लिए, उसने अपने कमजोरी के मूल कारण को जान, अपने पिता की मदद ली जो इस विषय के जानकार भी हैं और उनके पास पर्याप्त समय होता है जो उसके इन काम को खुश खुशी कर सकते थे. और इस तरह उनको कभी यह नहीं दुबारा स्थिति नहीं आयी. यही प्रक्रिया में सुधार या Corrective action है.

कभी कभी मूल कारण को जानते हुये भी उसे दूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस पर या तो हमारा बस नहीं होता इसलिए उन बाहरी अड़चन और अंदरूनी कमजोरियों के साथ रहना सीखना पड़ता है और जहां तक संभव हो उन लक्ष्य या जिम्मेदारी लेने और उनसे संबंधित जोखिम से बचना चाहिए . कारण को जानते हुये सावधानी या बचाव करना आवश्यक है. यही समस्या कहलाता है किन्तु हर बार जब भी वह होगा हमें रास्ता पहिले से ही पता होता है कि किस तरह से उसका सामना किया गया था.
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उपरोक्त उदाहरण में वर्णित शब्दों की सहायता से निर्मित निम्न लिखित सिद्धांत (शब्दों में परस्पर संबंध) को समझें

लक्ष्य का पूरा न होने या असफलता की संभावना ही जोखिम है.

अंदरूनी कमजोरियां और बाहरी अड़चन ये दोनों ही न हों तो जोखिम नहीं होता. अंदर की कमजोरी को दूर करने से ही बाहरी अड़ चन पर काबू पाया जा सकता है और यही वह मार्ग है जिससे जोखिम या लक्ष्य पूर्ति में असफलता की संभावना, दूर की जा सकती है.

अंदरूनी कमजोरियों को जोखिम नहीं कहते किन्तु यदि उन को दूर न किया गया और बाहरी अड़चन (जो अपने नियंत्रण में नहीं है) बनी हुई है तो उस अवस्था में उस जोखिम को घटित होने से रोकना संभव नहीं है. यह स्थिति लाचारी कहलाती है.

जोखिम risk जब तक घटित नहीं होता तब तक वह एक संभावना है. उस संभावना से पर्याप्त बचाव न होने को helplessness, vulnerable या लाचारी की अवस्था कहते हैं. किन्तु, जब वह घटित हो जाता है तब वही लक्ष्य पूर्ति में असफलता या दुर्घटना या Incident बन जाता है.

दुर्घटना होने पर सबसे पहले, उससे होने वाली हानि कहीं फैल न जाय इसका तुरंत व्यवस्था की जानी चाहिए. इसके बाद उसका निपटान किया जाय जिससे किसी तरह वापस सामान्य स्थिति आ जाय. इसके बाद उस दुर्घटना के मूल कारण की खोज की जानी चाहिए और उसे रोका जाय. इसके लिये योजना बनानी होती है जिससे संगठन में यह कारण दुबारा न दिखे और प्रक्रिया यह निश्चित करे कि उस नये अंदरूनी कमजोरियों जो दुर्घटना के मूल कारण के खोज root cause analysis से प्राप्त हुए हैं उन को न आने दिया जाय Corrective action. यह दो तरह से संभव है.

प्रक्रिया सुधार Process improvement भी इसका उदाहरण है. जिससे, नयी नयी कमजोरी जिसके बारे में पहिले से नहीं सोचा गया था और जोखिम होने के लिये उत्तरदायी थे उनको दूर कर दिया जाय.

यदि कमजोरी weakness पुरानी है या बाहरी अड़चन इस तरह हैं कि उसे दूर नहीं किया जा सकता है या प्रक्रिया बदलना संभव नहीं है, तो उस तरह का लक्ष्य लिया ही न जाए या उस तरह की जिम्मेदारी और जोखिम लेने से बचा जाय, या उसके मूल कारण को जानते हुये, पहिले जिस तरह सावधानी की गयी थी उसका ध्यान रखना चाहिए. इसे lesson learnt या सीख लेना कहते हैं.

धन्यवाद,
कृष्ण गोपाल मिश्र


(साभार - प्रबंध प्रणालियों के प्रमुख सलाहकार और गुरु श्री कृष्ण गोपाल मिश्र और फेसबुक वॉल https://www.facebook.com/kgmisra)

सोमवार, 11 मई 2020

नीति (Policy)


नीति (Policy)
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किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा अपनाई या प्रस्तावित की गई क्रिया या सिद्धांत को सामान्यतः नीति कहा जाता है। राष्ट्रों द्वारा भी नीतियों का निर्माण किया जाता है, जैसे राष्ट्रीय खेल नीति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, आदि आदि। संस्थाओं द्वारा भी कई प्रकार की नीतियाँ बनाई जाती हैं। मसलन जब कोई संस्था आईएसओ 9001:2015 गुणवत्ता प्रबंध प्रणाली कार्यान्वित करती है तो नीति (Policy) बनाती है। आईएसओ 9001:2015 गुणवत्ता प्रबंध प्रणाली मानक के खंड 5.2 के अधीन ऐसी नीति (Policy) संस्थापित, कार्यान्वित और संपोषित करनी होती है, जो संस्था के उद्देश्य और प्रसंग के प्रति उपयुक्त हो, जो संस्था की सामरिक दिशा को सहारा दे, जो गुणवत्ता उद्देश्यों को स्थापित कराने के लिए ढाँचा प्रदान करे, जिसमें लागू अपेक्षाओं को संतुष्ट कराने और गुणवत्ता प्रबंध प्रणाली के लगातार सुधार की प्रतिबद्धता शामिल हो। साथ ही संस्था का यह दायित्व है की वह संस्था में गुणवत्ता नीति संप्रेषित करें और साथ ही सुनिश्चित करें - (1) संस्था में गुणवत्ता नीति की समझ, (2) संस्था में गुणवत्ता नीति का अनुप्रयोग, (3) उपयुक्त इच्छुक दलों को गुणवत्ता नीति की उपलब्धता, जैसा उपयुक्त हो। साथ ही संस्था गुणवत्ता नीति संस्था में उपलब्ध कराए और इसकी दस्तावेज जानकारी सम्पोषित करे।

मैंने 'नीति' के सम्बन्ध में प्रबंध प्रणालियों के प्रमुख सलाहकार और गुरु श्री कृष्ण गोपाल मिश्र से बातचीत की, तो उन्होंने निम्न विचार सम्प्रेषित किए, जो मैं नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ -

"नीति उसे कहते हैं, जिससे लोग स्वतंत्र निर्णय ले सकें और उनके रास्ते भी एक दिशा और लक्ष्य की ओर जाएं। नीति के बाद कोई भी निर्णय लेने से किसी को कोई आश्चर्य नहीं होता। लोगों को दिशा और लक्ष्य का पता होता है। इससे संस्था में पारदर्शिता आती है और उसके पालन में सभी समान रूप से उत्तरदायी होते हैं। ..... अंग्रेजी भाषा में नीति को पॉलिसी कहते हैं। पॉलिसी, पुलिस, पॉलिटिशियन का मूल अर्थ है डंडा या पोल। किसी भी देश को जीतने के बाद उसके बाउंड्री पर डंडा खड़ा करने की परंपरा रही थी, जिससे लोगों को पता हो कि यह क्षेत्र उनका है। उनकी पहिचान के लिए उस दण्ड पर चिन्ह लगा कपड़ा बाँध कर उसे झंडा कहा जाता है। अपना संकल्प सब को बताने के लिए डंडा या झंडा गाड़े जाने या फहराने को ही पॉलिसी कहते हैं। इसी तरह नीति बनाने वाले उसकी रक्षा के लिए संकल्प लेते हैं और उसे सभी को बताते हैं। व्यवसायियों को भी अपने कर्मचारियों को कार्य की नीति बतानी होती है, जिससे वे मनमानी न कर सकें। उदाहरण के लिए व्यवसायी को अपने कर्मचारियों को उसका यह संकल्प बताना आवश्यक होता है कि ग्राहक की आवश्यकता को वे ठीक से समझे और उसे पूरा करें। इसके लिए कर्मचारियों को हर बार उसे याद दिलाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। पॉलिसी बदली जा सकती है, किन्तु सोच समझ कर, और किसी अवधि के बाद। .... नीति प्रबंधन की दिशा लक्ष्य के लिए एक संकल्प है जो सबको पता होना चाहिए। इसके बिना लोग अपने अपने तरीके से निर्णय नहीं ले सकते। उदाहरण के लिए - यह एक व्यावसायिक नीति हो सकती है कि किसी कार्य के लिए किसी को कोई रिश्वत न दी जाय, चाहे उसे न देने से कितना भी नुकसान क्यों न हो, या, रिश्वत देने के बिना यदि काम नहीं हो सकता है तो कहाँ कहाँ उसकी आवश्यकता है, और उसके लिये क्या सावधानी हो और उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। इसी तरह नीति के स्पष्टीकरण संस्था के लिए आवश्यक होते हैं। इसके बिना रिश्वत देने पर कर्मचारियों को नीति तोड़ने का दोषी माना जायगा। ..... नीति का अर्थ भारत में न्य इति से है। इसका अर्थ है कि नीति बनने के बाद इस पर अनावश्यक बहस नहीं होगी। न्य या बहस का अंत या इति ही नीति है। ट्रैफ़िक लाइट पर कोई बहस करने लग जाय कि लाल रंग पर क्यों रुकें और हरे रंग की लाइट पर ही क्यों चलें, यह नहीं हो सकता। यह जो भी तय हुआ है, वही सभी को बिना किसी बहस किए मानना ही होगा। यही कारण है कि नीति प्रशासन के लिए उपयोगी होती है। इसके बिना कर्मचारियों को समझाना सरल नहीं होता।" (साभार - श्री कृष्ण गोपाल मिश्र, गुरुग्राम, हरियाणा)

मिश्राजी के विचारों से हमें यह समझने में आसानी होती है कि नीति की जरुरत क्यों है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नीति से लोगों को दिशा और लक्ष्य का पता होता है। इससे संस्था में पारदर्शिता आती है और उसके पालन में सभी समान रूप से उत्तरदायी होते हैं। कोई भी नीति स्थाई नहीं है, वह बदली जा सकती है सोच समझ कर एक अवधि के बाद अर्थात कोई भी नीति की समीक्षा कर उसे बदला जा सकता है।

शुभकामनाओं सहित,

केशव राम सिंघल

शनिवार, 9 मई 2020

समग्र गुणवत्ता प्रबंधन (टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट)


समग्र गुणवत्ता प्रबंधन (टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट)

मैं जिस महात्मा का भक्त रहा हूँ उनका एक नाम श्री काउरो इशीकावा है। वे जापानी ऋषि हैं और उनके विचारों और पुस्तकों का अंग्रेज़ी अनुवाद उपलब्ध है। मानवीय संवेदना में औद्योगिकीकरण के सामंजस्य और उसकी उपयोगिता को उन्होंने टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट का नाम दिया।

जापान में कार्य से सिद्ध उपयोगिता के वृद्धि को धर्म या क्वालिटी कहते हैं। वहां क्वालिटी वस्तु की तकनीक में नहीं मानवता में वस्तु के उपयोगिता का नाम है। टोटल का अर्थ होता है अविभाजित या जिसमें व्यवसाय या प्रतिस्पर्धा के कारण कभी मनुष्यता के हितों का कोई टकराव न हो। क्वालिटी अर्थात वस्तु पर निर्भर उपयोगिता का वह भाव जिससे लगाव पैदा हो जाय या जिसे भारत में रज गुण कहते हैं। इसी विषय में उनका गंभीर चिंतन रहा है। मैनेजमेंट व्यवस्था की वह समझ है जिससे संगठन के माध्यम से समाज के उद्देश्य या लक्ष्य पूरे किए जा सकते हैं और जिससे रिस्क या सम्भावित असफलता के भय के सभी अनुमानित कारणों को दूर किया जाय या उसे होने पर नियंत्रित किया जा सके।
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श्री काउरो इशीकावा के चिंतन जिससे जापान बहुत प्रभावित हुआ है उसके वाक्य इस तरह के हैं।

किसी व्यक्ति की आमदनी इस लिये अधिक या कम नहीं होनी चाहिए कि उसकी योग्यता कैसी है। व्यक्ति की योग्यता या मेरिट को उसकी आमदनी से कभी नहीं जोड़ना चाहिए।

उनका यह कहना था कि यदि योग्यता का आकलन धन से होता है तो इसका मतलब यह है कि योग्यता खरीदी और बेची जा सकती है। इससे योग्य व्यक्ति निंदा का पात्र बन जायगा क्योंकि वह अपने योग्यता के वृद्धि के लिए धन को कारण समझेगा। शिक्षा का आधार ज्ञान नहीं व्यापार बन जायगा और ज्ञानी शिक्षित व्यक्ति व्यापार न जानने के कारण असहाय हो सकता है। लोग फिर अपने अपने रुचि या स्वाभाविक संकल्प को त्याग कर सिर्फ धन के लिये कार्य करेंगे। मानवता के पतित होने में फिर देरी नहीं लगेगी।

धन, किसी कार्य या क्वालिटी का उद्देश्य नहीं हो सकता। यह एक साधन है साध्य नहीं। धन की उपलब्धता व्यवसाय के लिए आवश्यक है किन्तु इससे क्वालिटी पर कोई असर नहीं होता। क्वालिटी का कारण कार्य में रुचि और मानवता के प्रति समर्पण है।

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जापानी उद्योगपति अमेरिका या फ्रांस को देख कर आश्चर्य करते थे। उनको धन के लालच से कैसे विद्या या योग्यता का आकलन किया जाता है देख, आश्चर्य होता था। काम करने वाले मजदूर और उनके अधिकारियों के वेतन और सुख सुविधाओं में अमानवीय भिन्नता देख कर उनको विश्वास नहीं हुआ।

जापान एक साँस्कृतिक देश है। यह देश चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। भारत या अमेरिका की तरह यहां विदेशी आक्रमण नहीं हुये। इसी लिए यहां की संस्कृति बची रह गई। इसी लिए, यहां परस्पर अविश्वास का कोई कारण ही नहीं रहा और असत्य जैसे रक्षा उपकरणों की आवश्यकता नहीं रही। परिवार में जिस तरह लोग एक दूसरे का सम्मान और परंपरा का निर्वाह करते हैं उससे प्रबंध कला में जटिलता और द्वेष नहीं आ सकी। यहां वकील या झगड़े को लगाने बुझाने वालों की संख्या संसार में सबसे कम है। आज भी इस मामले में जापान एक निर्बल देश है।

भारत में जिस तरह अमानवीय औद्योगिकीकरण हुआ है वह पश्चिमी असभ्यता से भी अधिक है। हम भारतीय अपने आप को बुद्ध की सन्तान कहते रहे हैं किन्तु उससे कोई लाभ नहीं है। हमसे कई गुना अच्छे पश्चिमी असभ्य देश हैं जो संस्थागत लालच और भय के सदुपयोग से प्रबंधन की प्रणाली को विकसित कर चुके हैं। जहां योग्‍यता का बाजार है और वहां उसकी मंडी है। उनकी अमानवीयता या असमानता, इस लिए स्वीकार्य है कि उससे किसी का शोषण नहीं हो रहा है।

भारत में महाराष्ट्र में मजदूरों के रेल्वे के मार्ग पर कट कर मरने की खबर से मैं विचलित हो गया हूँ। मुझे लगता है कि मैं भी दोषी हूँ कि जिस देश में मैं यही शिक्षा देता रहा हूँ उसी भारत के औद्योगिक विकास की गति का कारण मानवता का शोषण है।

दुःख के साथ,

कृष्ण गोपाल मिश्र
गुरुग्राम, हरियाणा

नोट - लेखक का कहना है कि टोटल (Total) अविभाज्य को कहते हैं, जिसमें व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण मानवीय हित का टकराव न हो।



(साभार - Das Krishna फेसबुक वॉल)